बात 1974 की है। रोज-रोज हड़ताल होती थी, आफिसों का घेराव होता था। शहर की हालत यह हो गई कि जुलूस और प्र... बात 1974 की है। रोज-रोज हड़ताल होती थी, आफिसों का घेराव होता था। शहर की हालत यह ह...
आज इतने साल बड़े बड़े भीड़भाड़ वाले शहरों के 'अकेलेपन' से भागकर वह अपने गाँव मे आयी है।उसे आज इतने साल बड़े बड़े भीड़भाड़ वाले शहरों के 'अकेलेपन' से भागकर वह अपने गाँव मे आयी ...
कवि सम्मेलन के बाद शहर में जहाँ सुनंदा के अपने प्रशंसकों को धोखा देने की चर्चा थी तो वहीं दिनेश भास्... कवि सम्मेलन के बाद शहर में जहाँ सुनंदा के अपने प्रशंसकों को धोखा देने की चर्चा थ...
शहर में याद आते गाँव की कहानी------- शहर में याद आते गाँव की कहानी-------
ख़ामोश होती ज़ुबाँ फिर से ज़िन्दगी की हो पहल शुरू। ख़ामोश होती ज़ुबाँ फिर से ज़िन्दगी की हो पहल शुरू।
अब हर साल गाँव मे सम्मेलन होता है, घर के दरवाजे साल भर में खुल जाते है। अब हर साल गाँव मे सम्मेलन होता है, घर के दरवाजे साल भर में खुल जाते है।